भाषा चिरपरिवर्तनशील है। भाषा में परिवर्तन या विकास
उसके पाँचों ही रुपों –ध्वनि ,शब्द, रुप, अर्थ और वाक्य में होता है। भाषा में परिवर्तन
दो प्रमुख भागों में विभाजित है।
१.आभ्यन्तर २. बाह्य
आभ्यन्तर
वर्ग में भाषा की अपनी स्वाभाविक गति तथा वे कारण सम्मिलित है जो प्रयोज्या की शारीरिक
तथा मानसिक योग्यता आदि सम्बन्धित स्थिति से सम्बन्ध रखते है । बाह्य वर्ग में वे कारण
आते है , जो बाहर से भाषा को प्रभावित करते है।
१.आभ्यन्तर वर्ग- (क) प्रयोग से घिस जाना- अधिक प्रयोग
के कारण धीरे-धीरे सभी चीजों की भाँति भाषा में भी स्वाभाविक रुप से परिवर्तन होता
है। संस्कृत की कारकीय विभक्तियाँ इसी प्रकार धीरे धीरे घिसते घिसते समाप्त हो गई।
(ख) बल- जिस ध्वनि या अर्थ पर अधिक बल दिया जाता
है, वह अन्य ध्वनियों या अर्थो को या तो कमजोर बना देते है या समाप्त कर देते है। इस
प्रकार इनके कारण भी भाषा में परिवर्तन हो जाता है।
(ग) प्रयत्न लाघव- व्यक्ति कम से कम प्रयास से अधिक
से अधिक काम करना चाहता है, इसी प्रयत्न लाघव के प्रयास से ही शब्दों को सरल बनाने
या सरलता के लिए कभी तो बड़ा और कभी छोटा बना डालते है। कृष्ण का कन्हैया , कान्हा
का किशन , गोपेन्द्र का गोबिन , स्टेशन का टेशन, प्लेटो से अफलातुन । प्रयत्नलाघव कई
प्रकार से लाया जाता है, स्वर लोप- अनाज से
नाज, एकादश से ग्यारह, २.व्यंजन लोप- स्थाली से थाली, ३. अक्षर लोप- शहतुत से तुत ४.
स्वरागम- स्काउट से इस्काउट, कर्म से करम , कृपा से किरिपा ५. व्यंजनागम- अस्थि से
हड्डी ६. विपर्यय- वाराणसी से बनारस ७समीकरण- शर्करा से शक्कर, ७. विषमीकरण- काक से
काग, ८. स्वतः अनुनासिक – श्वास से साँस, तथा कुछ अन्य जैसे- गृह से घर, वधु से बहु
आदि।
(घ)मानसिक स्तर-्बोलने वालों के मानसिक स्तर में
परिवर्तन होने से विचारों में परिवर्तन होता है। विचारों में परिवर्तन होने से अभिव्यंजना
के रुप में परिवर्तन होता है। और इस प्रकार भाषा पर भी प्रभाव पड़ता है।
(ण)अनुकरण की अपूर्णता-अनुकरण प्रायः अपूर्ण होता
है, होता यह है कि अनुकरण में अनुकर्ता कुछ भाषिक तथ्यों को छोड़ देता है, तथा कुछ
को अपनी ओर से अनजाने ही जोड़ देता है। इस तरह अनुकरण में भाषा का परिवर्तन पनपता है।
अनुकरण की अपुर्णता के लिए भी कई कारण है-(१)शारीरिक
विभिन्नता-ध्वनियों का उच्चारण अंगों के सहारे करते है। और सब उच्चारण अंग एक से नही
होते, अतएव उनका अनुकरण पूर्ण नही हो पाता।