Wednesday, 28 May 2014

भाषा के प्रमुख स्तर


ये प्रमुख शाखाएँ या भाषा को प्रमुख व्यवस्था के आधार पर विभाग ‘वाक्य पदीय’ में भी किया है।इस तथ्य को ध्यान में रखकर भाषा के चार प्रमुख स्तर दिखाई पड़ते है।
१.वाक्य विज्ञान-भाषा की प्रमुख ईकाइ वाक्य ही है। (भाषा विचार विनिमय का साधन है,तथा एक पूर्ण विचार की अभिव्यक्ति वाक्य की पूर्ण ईकाइ में ही होती है।)वाक्य विज्ञान में वाक्य की रचना , वाक्य में प्रमुख रुप, तथा रुप समुहों के परस्पर संबंध की व्याख्या की जाती है।इसके लिए आसन्न घटक पद्धति का विशेष प्रचार है।इसके अंदर अर्थ की दृष्टि से निकटवर्ती पदों का या पद समुच्चयों का विश्लेषण किया जाता है।इसके अतिरिक्त वाक्य की रचना, उसके पदक्रम, अन्वय, क्रमिकता, रुपान्तर, वाक्य विन्यास में परिवर्तन तथा कारणादि बिंदुओं का विचार किया जाता है। यह विषय बहुत ही जटिल है। इसका संबंध मनुष्य के पारस्परिक तथा सामाजिक दोनों संदर्भ से है।
   २.रुप विज्ञान-वाक्य के घटक अवयवों को रुप कहते है।संस्कृत वाक्य एअचना में उनको पदसंज्ञा दी जाती है। अर्थात कोष में निर्दिष्ट शब्द कुछ अर्थवक्ता अवश्य लिए रहता है। परन्तु वाक्य में प्रयोग करते समय उसे कुछ परवर्ती किया जाता है। संस्कृत में उस कोषगत मूलरुपों को प्रातिपादिक कहते है।इसे प्रकृति का मुलरुप मानकर उनसे विभिन्न प्रत्यय को जोड़े जाते है, जो वाक्य में उनके विशिष्ट कार्य को या परस्पर संबंध को व्यक्त करते है।इस प्रकार संस्कृत के पदों में
अर्थ-तत्व तथा संबंध तत्व मिलकर पद निर्मित करते है।इस प्रकार वाक्य में प्रयुक्त पदों के संबंध
तत्व धातु, उपसर्ग, प्रत्यय पद रचना की प्रक्रिया व्याकरणिक पदों की रचना तथा प्रयोग , रुप वाक्य का वितरण आदि विश्लेषणादि विषयों का विवेचन किया जाता है।इस प्रकार हम कह सकते है कि जिनमें पदों का प्रयोग होता है, एसी भाषा के पदों के परस्पर संबंध का अध्ययन वाक्य विज्ञान के अन्तर्गत होता है। तथा पदों के निर्माण करने वाले तत्वों का आंरिक संबंधों का विश्लेषण पद विज्ञान के अन्तर्गत आता है। इस प्रकार इस शाखा में पद की आन्तरिक रचना का विवेचन होता है।इससे उपसर्ग ,धातु, प्रत्यय, आदि तत्वों का अध्ययन होता है।जिन भाषाओं में पद प्रकृया (प्रकृति तथा प्रत्यय)न होकर भाषा स्थान या क्रम से ही पद या रुप निर्धारित होता हो ऐसी भाषा में वाक्य विचार तथा रुप विचार में सीमा रेखा खींचना कठिन होता है।
ध्वनि विज्ञान-भाषा का अंत्य घटक ध्वनि है। ध्वनि विज्ञान के अन्तर्गत ध्वनि की उत्पत्ति ,ध्वनि से संबंधित उच्चारण अवयवों का अध्ययन तथा ध्वनि में परिवर्तन उसकी दिशाएँ तथा कारण आदि का अध्ययन होता है। इस अध्ययन में विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों की भी सहायता की जाती है। इसी के अन्तर्गत ध्वनियों के वितरण आदि को लेकर ध्वनि ग्राम की अवधारणा का भी विवेचन होता है।
अर्थ विज्ञान- भाषा का प्रयोजन मनुष्य समुदाय में परस्पर व्यवहार करना है,अर्थात ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था के माध्यम से हम अपनी इच्छा ,विचार, स्थिति, या घटना आदि की अभिव्यक्ति तथा संप्रेषण करते है। इस प्रकार हम अर्थ को व्यक्त करते है। आधुनिक भाषा विज्ञान वेत्ता अर्थ की अनिश्चितता तथा अरुपता के कारण इसका अध्ययन भाषा तंत्र के अन्तर्गत करना उचित नही समझते , इस अध्ययन को वे दर्शन का विषय मानते है।परन्तु अर्थ को भी अब वैज्ञानिक विश्लेषण पद्धतियों से परखा जाता है।(अर्थ विज्ञान में अर्थ की धारणा, इसमें परिवर्तन ,अर्थ संकोच तथा अर्थ विकासादि का अध्ययन किया जाता है।)
                   इन विधेयों के अतिरिक्त भाषा विज्ञान में गौण रुप से कुछ अन्य विषयों का भी अध्ययन होता है।भाषा की उत्पत्ति- भाषाओं का वर्गीकरण – इसमें वाक्य, रुप, शब्द, ध्वनि तथा अर्थ के आधार पर विश्व की भाषाओं का तुलनात्मक तथा ऐतिहासिक पद्धति से अध्ययन किया जाता है।तथा उनका वर्गीकरण किया जाता है।
भाषिक भुगोल- किसी भाषा के क्षैत्र अर्थात उसके भौगोलिक विकास का अध्ययन । यथार्थतः बोली भूगोल विज्ञान नामक शाखा भी इसी का नाम है।
भाषा कालक्रम विज्ञान-सांख्यिकी के आधार किसी भी भाषा के आधारभुत शब्द समुहों में पुराने और नये तत्वों का अध्ययन करके उस भाषा की आयु का कालविशेष की अवस्था का पता लगाया जाता है।
भाषा पर आधारित प्रागेतिहासिक खोज –इसमें भाषा के आधार पर प्रागेतिहासिक काल की संस्कृति का अध्ययन किया जाता है।
लिपि विज्ञान- लिपि की उत्पत्ति ,विकास शक्ति तथा उपयोगिता का अध्ययन । प्रायोगिक पक्ष को ध्यान में रखकर ध्वनि विज्ञान की सहायता से टंकन तथा मुद्रणादि की सुविधाओं की दृष्टि से लिपि में सुधार पर भी विचार किया जाता है।
मनोभाषा विज्ञान- भाषा के मनोवैज्ञानिक पक्षों का अध्ययन
समाज भाषा विज्ञान-समाज और भाषा का संबंध । विभिन्न सामाजिक स्तर पर  भाषा का अध्ययन किया जाता है।
शैली विज्ञान- एक ही भाषा में बोलने वाले सभी व्यक्तियों की भाषा पूर्णत; समान नही होती ,यह बात साहित्य में तो पुर्ण रुप से दिखाई देती है। व्यक्तियों की इन भाषा रुपों के विशेषता का अध्ययन ही शैली विज्ञान कहलाता है।
सर्वेक्षण पद्धति-किसी क्षैत्र की बोली का विशेष पद्धति से विश्लेषण के लिए अध्ययन सर्वेक्षण पद्धति के अन्तर्गत आता है।

भू भाषा विज्ञान-इसके अन्तर्गत विश्व स्तर पर भाषाओं का वितरण इनका सामाजिक सांस्कृतिक महत्व इनका परस्पर संबंध राष्ट्रभाषा तथा राजभाषा आदि पर विचार किया जाता है।                    तुलनात्मक भाषा विज्ञान इस पद्धति से समकालीन भाषाओं का अध्ययन तो होता ही है, ऐतिहासिक अध्ययन में इसका विशेष योग है।इस पद्धति से एक ही परिवार की भाषाओं के अज्ञात स्वरुप का पता लगाने के लिए पुनः निर्माण की विधि का उपयोग किया जाता है।इस पद्धति से भारोपीय तथा इंडो हिडाइट जैसी प्राचीन भाषाओं का पुनः निर्माण हो जाता है।