हम हिन्दी भाषी है।
हिन्दुस्तान हमारा देश है।हिन्दी हमारे देश की सर्वोत्कृष्ट भाषा मानी जाती है। यह
हमारी मातृभाषा है।हमें अपने देश पर अपनी भाषा पर गर्व है।हिन्दी एक उत्कृष्ट भाषा
है। हिन्दी साहित्याकाश में अनेक देदीप्यमान नक्षत्र उदित हुए, अनेक प्रसिद्ध उपन्यासकार,
कहानीकार, साहित्यकार ,इतिहासकार एवं कवि हुए, जिन्होंने अपने देश का परिवेश , यहाँ
की संस्कृति,यहाँ की सभ्यता , छोटे छोटे गाँवों का वातावरण ,यहाँ की धुल मिट्टी सब
कुछ अत्यन्त सरल एवं मर्मस्पर्शी भाषा में अपने भावों को अभिव्यक्त किया।तथा हिन्दी
भाषा सूत्र में प्रेम सहित ज्ञान मालिका पिरोई गई है, जो साहित्य प्रेमियों के ह्रदय
कमल में धारण करते ही आनन्द लहरियों को प्रवाहित करेगी।हिन्दी हमारी मातृभाषा है,इन
साहित्य प्रेमियों ने अपना सम्पूर्ण जीवन माता की सेवा में न्यौछावर कर दिया।माँ की
सेवा में एक समर्पण भाव से जो भी अभिव्यक्त किया, उनकी साहित्यिक भाषा दिल को अन्दर
तक छु जाती है।उनकी कहानियों में हमारी संस्कृति झलकती है, हमारी संस्कृति को सहेज
कर रखना हिन्दी की बहुत बड़ी देन है।
किन्तु हमारा यह बहुत
बड़ा दुर्भाग्य है,हम अपनी संस्कृति को खोते जा रहे है, अपनी भाषा को भुलकर दुसरे देश
की भाषा को अधिक महत्व दे रहे है।हम अपना दैनिक हिन्दी का अखबार भी हिन्दी भाषा में
नही पड़ सकते,उसके साथ अँग्रेजी शब्दों को पढ़ना मजबुरी हो गई है। ये शब्द न१ पर चलने
वाला हिन्दी अखबार नई दुनिया से है-एक्वेरियम,एक्जीबिशन,्कंसेप्ट,्ग्लोबलाइजेशन कांनक्लेव
इस प्रकार के अनेक शब्द है जो हम नित्य प्रति पढ़ते है।दुनिया में जितने भी
देश है,वहाँ अपनी भाषा में व्यवहार करने पर लोग गर्व महसुस करते है, दैनिक व्यवहार
में अपनी ही भाषा ,अपने देश की भाषा बोली जाती है।पुरे संसार में एकमात्र भारत ही एक
ऐसा देश है, जहाँ हिन्दी को गौण तथा इँगलिश को प्रमुख भाषा माना जाता है। यहाँ पर इँगलिश
बोलने पर गर्व महसुस किया जाता है।बच्चों से अधिक माता पिता को गर्व महसुस होता है।स्कुलों
में हिन्दी की जगह इँगलिश पर अधिक ध्यान दिया जाता है।हमारी शिक्षा प्रणाली पुरी तरह
दुषित हो गई है।कितने आश्चर्य एवं दुख की बात है, कि हम अपनी माता को निस्सहाय, निरुपाय
अवस्था में छोड़कर दुसरों की सेवा में लगे हुवे है।अपनी माँ के घावों को सहलाने के
लिए हमारे पास समय नही है।आज उन साहित्यकारों की आत्माएँ भी धार-धार रोती होगी ।जिनके
हिन्दी भाषा रुपी सहेजे हुए पुष्प पैरों तले कुचले जा रहे है।
अन्त में मै
हिन्दी भाषा को नमन करती हुँ, अपने हिन्दुस्तान को नमन करती हुँ, तथा उन सभी साहित्यकारों
को नमन करती हुँ, मै हिन्दी एवं संस्कृत में हमेशा लिखती रहुँगी।जय हिन्द