Sunday, 26 November 2017

संस्कृत में अनुवाद

                               
यह था छोटे छोटे वाक्यों का अनुवाद  ।मै पढ़ता हूँ  ।अहम् पठामि   ।मै खाता हूँ  । अहम् खादामि ।वह दौड़ता है । सः धावति  । घौड़ा दौड़ता है =  अश्वः धावति ।तुम पीते हो= त्वम् पिबसि।इस प्रकार छोटे वाक्यों का अनुवाद हमने सीखा।
अब थोड़े बड़े वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद करेगें   । इसके लिये हमें कारक का प्रयोग भी करना पड़ेगा  । कारक में सात विभक्तियाँ होती है  , यह हम पहले पड़ चुके है  ।
प्रथमा  -   ने
द्वितीया-  को
तृतीया- से, द्वारा
चतुर्थी-  के लिये
पंचमी- से
षष्ठी- का , की , के
सप्तमी- में, पर
संबोधन- हे, अरे
इस प्रकार कारक का अर्थ प्रत्येक विभक्ति के अर्थ के अनुसार किया जायगा  ।  तथा काल का प्रयोग भी होगा, भुत , भविष्य , वर्तमान   जो भी हो – वाक्य हे-
राम ने रावण को मारा – ने- प्रथमा, को- द्वितीया  , मारा- भुतकाल  ।
रामः रावणं  अताडयत   ।
पेड़ से पत्ता गिरा -   वृक्षेण पत्रं अपतत् ।
हम सब प्रातःकाल बगीचे में घुमने जाते है ।-  वयम् प्रातःकाले उद्याने भ्रमणं गच्छामः ।
मै सूर्य को नमस्कार करता हूँ- अहम् सूर्यं नमस्करोमि (नमामि) ।
राम श्याम को अपनी पुस्तक देता है-  रामः श्यामं स्वपुस्तकं ददाति ।
मैनें फुल को देखा ।     अहम् पुष्पं अपश्यम् ।
मै प्रातःकाल दौड़ता हँ ।    अहम् प्रातःकाले धावामि । 

      इस प्रकार पुरुष , काल . वचन . सभी बातों को ध्यान में रखते हुवे हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद कर सकते है ।

Tuesday, 7 November 2017

संस्कॄत में अनुवाद

          
हिन्दी से संस्कॄत में अनुवाद करने के लिये तीनो काल , भूत, भविष्य, तथा वर्तमान , कालों के प्रत्यय , तीनों वचन , एक वचन , द्विवचन , तथा बहुवचन  कारक परिचय , विभक्तियाँ ,प्रथमा से लेकर सप्तमी तक सातों विभक्तियाँ , आदि….. कुछ प्राथमिक बातों का ज्ञान होना आवश्यक है। इन सारी बातों का ज्ञान होने के पश्चात हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करना सरल हो जाता है
          मै जाता हूँ ।   अहम् गच्छामि  ।
वर्तमान काल  में धातु इस प्रकार चलाई जाती है
                   एक वचन              द्विवचन          बहुवचन
उत्तम पुरुष      गच्छामि              गच्छावः            गच्छामः
मध्यम पुरुष      गच्छसि              गच्छथः             गच्छथ
अन्य पुरुष          गच्छति             गच्छ्तः              गच्छन्ति
इसी प्रकार जितनी भी धातुएँ है , अर्थात जितनी भी क्रियाएँ है, जैसे खाना, पीना, जाना उठना , बैठना , दोड़ना   इन सभी में ये प्रत्यय लगाये जाते है ।क्रिया उसे कहते है जिस कार्य को किया जाता है । कर्ता उसे कहते है जो कार्य को करता है  ।मैं जाता हूँ   - मैं कर्ता   जाता –क्रिया   गच्छ = जाना   मि   वः   मः  गच्छामि  इस प्रकार प्रत्येक क्रिया में यह प्रत्यय लगते है।
उत्तम पुरुष  एकवचन मैं   द्विवचन- हम दौनो    बहुवचन- हम सब
मध्यम पुरुष  एकवचन-तुम   द्विवचन- तुम दौनों    बहुवचन- तुम सब
अन्य पुरुष     एकवचन- वह(सर्वनाम,सभी)वे दौनों           वे सब
               अब देखिये  मैं जाता हूँ  - मैं उत्तम पुरुष और एकवचन है  मैं कर्ता है, यदि कर्ता उत्तम पुरुष और एकवचन है तो क्रिया में भी उत्तम पुरुष और एकवचन ही होगा ।मि उ.पु. एक.व. है ।एस प्रकार अहम् के साथ गच्छामि ही होगा ।  मैं जाता हूँ  - अहम् गच्छामि   ।
हम दौनों जाते है- आवाम् गच्छावः । हम सब जाते है- वयम् गच्छामः ।

तुम जाते हो-  त्वम् गच्छसि । तुम दौनों जाते हो – युवाम् गच्छथः । तुम सब जाते हो- युयम् गच्छथ ।  वह जाता है- सः गच्छति । वे दौनों जाते है- तौ गच्छतः । वे सब जाते है – ते गच्छन्ति  ।  इस प्रकार कर्ता यदि जिस पुरुष , जिस वचन और जिस काल का है, क्रिया में भी वही पुरुष, वही वचन और वही काल लगेगा। इति  ।

Saturday, 4 November 2017

स्वरों की स्थिति


अ, इ, उ, ओ, की स्थिति के बारे में समझाइये ?
अ-    स्वर के उच्चारण में जीभ का जो भाग व्यवह्रत होता है, उसके आधार पर उसे अग्र स्वर, पश्च स्वर, या मध्य स्वर  नाम देते है ।अतः जिव्हा के स्थान की दृष्टि से ‘अ’ मध्य स्वर है । जिव्हा का विशिष्ट भाग अधिक उठने से ‘अ’ संवृत है, तथा ओठों की स्थिति के अनुसार ‘अ’ उदासीन है , मात्रा की दृष्टि से ‘अ’ ह्रस्व स्वर है, कोमल तालु से उच्चरित होने के कारण ‘अ’ मौखिक स्वर है , ‘अ’ शिथिल स्वर है ।कुल स्वर मूल होते है , अर्थात उनके उच्चारण में जीभ एक स्थान पर रहती है , जैसे ‘अ’ मूल स्वर है, घोष है  । (‘अ’ आवृतमुखी , शिथिल, अग्र, विवृत)
इ-जीभ के स्थान की  दृष्टि से इ अग्र स्वर है । ओष्ठों की स्थिति की दृष्टि से ‘इ’ विस्तृत स्वर है , ‘इ’ ह्रस्व स्वर है, ‘इ’ अनुनासिक स्वर है, ‘इ’ अघोष है, ‘इ’ शिथिल है, तथा मूल स्वर है ।
उ-  जिव्हा के स्थान की दृष्टि से उ पश्च स्वर है, संवृत है, पूर्ण वृत्ताकार है, अघोष है, शिथिल है ।
ओ-  ओ पश्च स्वर है, अर्द्धसंवृत,  मात्रा की दृष्टि से प्लुत है,  ‘ओ’ श्रुति  कहा जाता है, अवधी तथा भोजपुरी क्षेत्र में औ का (अओ) उच्चारण होता है । अर्थात ओ वृतमुखी दृढ , पश्च, अर्द्धसंवृत है।
          इस प्रकार स्वरों की स्थिति को समझना वेदों की ऋचाओं , सूक्तों को पढ्ने में सहायक होता है  ।