Thursday, 22 February 2018

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी


  जनन्या वात्सल्यं गरीयस्त्वं चानुभूतेरेव विषयः । जनन्याः स्नेहाधिक्यं स्निग्धा दृष्टि; गम्भीरः प्रेमलालनं च वर्णयितुम् कः प्रभवति ।
    यदा यक्षः युधिष्ठिरं प्रश्नमपृच्छत् ‘किंस्विद  गुरुतरा भूमेः ? ‘’ युधिष्ठिरः उत्तरत् – माता गुरुतरा भूमेः ‘ । जन्मभूमिश्च जननीव पालयति लालयति च । तस्याः प्रेम सार्वत्रिकं प्रति दानानपेक्षं च वर्तते । मरणान्तमपि जन्मभूः शरणं प्रयच्छति । सा खल्वस्य भूम्यमन्नं जलं वसु रत्नं च ददाति , अतएव सा अन्नदा , वसुन्धरा, रत्नगर्भा, चेति नामानि कीर्त्यते । यस्मिन देशे वयं निवसामः यत्र जन्म लब्धवन्तः यस्य जलमन्नं चोपभूज्य वयं पुष्य बलवन्तश्च संजाताः तस्य गरीयस्तव को न प्रत्येति । जन्मभूलोकान्पालयति कुपुत्रानप्यंके आरोपयति , देशद्रोहिभ्यो अप्याश्रयं ददाति , अलसेभ्यो अपि भोजनं प्रयच्छति , अपराधीनो अपि रक्षति । अतएव जनाः सदा जन्मभूमिं स्मरति । तद् दर्शन लालसया च भृशं तेषां चित्तं दूयते । देशभक्ताश्च स्वदेशस्य रक्षणार्थं स्वप्राणाण , धनानि स्वजनान् च हातुं सर्वदैव सभद्य लक्ष्यन्ते । बहवो देश भक्ता जन्मभूमि रक्षणार्थं स्वप्राणानपि नियण्छन्ति।
           वस्तु वस्तु संसारे जननी जन्मदातृत्वेन जन्मभूमिश्च जीवनदातृत्वेन गरीयस्यौ । उभयोगौरवभारं मानवो यावत्जीवं धारयति । अनयोः ऋषभारं मनुष्यैर्मातृभक्त्या जन्मभूमेषया चावतारयितुं  प्रयतितव्यं ।
            क्षुद्रपशुपक्षिणामपि जन्मभूमिं प्रति प्रेम परिलक्ष्यते । वनभूमिलालितो गजो न तथा राजगृहो सौख्यं अनुभवति यथा वनभूभागेषु  स्वर्गा अपि न तथा अमन्द मानन्दं विन्दन्ते प्राप्तादपंजरे यथा वनप्रान्तस्थवृक्षाणां कुलायेषु । अचेतना अपि वृक्षारोहन्ति निजजन्मभूमिवियुक्ता अन्येषु प्रदेशेष्वारोपितः
          अथर्ववेदस्य पृथिविसूक्तं मानवस्य जन्मभूमि प्रतिनैसर्गिकमनुरागं ललियया गिरा व्यनक्ति  ‘’माता भूमि पुत्रो अहं पृथिव्याः।‘’ निजजन्मभूमिं प्रति सत्यो अनुरागो अन्यदेशान् प्रति प्रीतिं नोपदिशति । अयं अन्यदेशान्प्रति स्नेहस्य सीमां विस्तारयति । अस्यादर्श्वाक्यन्तु 
‘’वसुधैव कुटुम्बकं ‘’ अतः स्वजन्मभूमि प्रशंसा अपि न देशभक्ति ; निजजन्मभूमिवदन्येषामपि जन्मभूवः सम्मानकरणं देशभक्तिर्नाम ।
         देशभक्तस्य चित्तं न स्वर्गे अपि ताहम् रमते याहद् निजजन्मवसुन्धरायाम् । तथापि न मातृसद्दशी विमाता सम्मान्यते । अत; एषाहः –‘’जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गाद्पि गरीयसी’’ 

Monday, 15 January 2018

ऋग्वेद

ऋग्वेद प्राचीन साहित्य की सबसे प्राचीन रचना है । प्राचीनतम मनुष्य के मस्तिष्क तथा धार्मिक और दार्शनिक विषयों का मानव भाषा में सबसे पहला वर्णन ऋग्वेद में मिलता है ।मनुष्य की आदिम दशा के और भी चिह्न पाये जाते है । चारों वेदों में ऋग्वेद का स्थान मुख्य है ऋग्वेद अन्य वेदों की अपेक्षा अधिक प्राचीन है, तथा इसमें अन्य वेदों की अपेक्षा अधिक विषयों का सन्निवेश है । यजुर्वेद और सामवेद में याज्ञिक मंत्रों की प्रधानता है ।ऋग्वेद में वैदिक काल की सारी विशेषताओं के अधि विशद और पूर्ण वर्णन मिल सकते है ।
ऋग्वेद की भाषा उत्तर प्राचीन संस्कृत से बिल्कुल भिन्न है, ऋग्वेद के मंत्रों में सुन्दर कविता पाई जाती है ।वह कविता जो हिमालय से निकलने वाली गंगा नदी के समान ही पवित्र और नैसर्गिक है।  जिसमे कृत्रिमता नही है। तर्क शास्त्र से सुरक्षित तेजस्वी षड्दर्शनों एवं दार्शनिक सिद्धान्तों को प्राप्त करने के लिये ऋग्वेद की तेजस्वी वाणी अत्यन्त सहायक सिद्ध होती है । वेद ईश्वर की वाणी और ज्ञान के अक्षत भंडार है ।        
                   वेद मंत्रों का संकलन बडे सुन्दर और वेज्ञानिक ढंग से किया गया है। एक विषय के कुछ मंत्रों के समुह को सुक्त या स्तोत्र कहते है ।ऋग्वेद इसी प्रकार के सुक्तों का संग्रह है , ऋग्वेद के कुल सुक्तों की संख्या लगभग ३०२८ है ।सबसे बडे सुक्त में १६७ मंत्र है, और सबसे  छोटे में केवल दो ।कुल मंत्रों की संख्या लगभग ३०,००० है ।सम्पूर्ण ऋग्वेद मंडलो , अनुवाको, सुक्तों और मंत्रों में विभक्त है ।ऋग्वेद में १० मंडल है, प्रत्येक मंडल में कई अनुवाक होते है और हर अनुवाक में अनेक सुक्त । वेद को ६अंगो सहित पढ़ना चाहिये, किसी मंत्र को उसके ऋषि , छंद और देवता को बिना जाने पढ़ने से पाप लगता है ।
                   ऋग्वेद के अधिकांश सूक्त देवताओं की स्तुति में लिखे गये है ।सबसे पहले अग्नि की स्तुति में लिखे हुवे सूक्त आते है, फिर इन्द्र के सूक्त , उसके बाद किसी भी देवता के स्तुति –विषयक सूक्त जिनकी संख्या सबसे ज्यादा हो , रक्खे जाते है ।    यदि दो सूक्तो में बराबर मंत्र हो तो बड़े छंद वाला सूक्त पहले लिखा जायगा , अन्यथा ज्यादा मंत्रो वाला सूक्त पहले लिखा जाता है । लगभग ७००-८०० सूक्तो का विषय देव-स्तुति है, बाकी २००-३०० सूक्तो में अन्य विषय आ जाते है । कुछ सूक्तो में शपथ शाप, जादू, टोना ,आदि का वर्णन है, कुछ सूक्तो में विवाह , मृत्यु आदि संस्कारो का वर्णन है दसवे मंडल में विवाह संबंधी सुन्दर गीत है, उपनयन संस्कार का नाम ऋग्वेद में नही है ।
          कुछ सूक्तो को पहेली सूक्त कहा जा सकता है । वह कौन है जो अपनी माता का प्रेमी है, या अपनी बहन का जार है । उत्तर- सूर्य ।द्युलोक के वाचक होने के कारण उषा और सूर्य भाई बहन है, जिन में प्रेम संबंध है ।सूर्य द्यो (आकाश) का प्रेमी भी है  । ‘माता के प्रेमी से मैने प्रार्थना की , बहिन का जार मेरी प्रार्थना सुने , इन्द्र का भाई और मेरा मित्र इत्यादि । गणित सम्बन्धि पहेलिया महत्वपूर्ण है ।
ऋग्वेद में एक द्युत सूक्त है, एक सूक्त में मेंढकों का वर्णन है, एक अरण्य सूक्त या वन सूक्त है । चोथे मंडल में घुड़दोड़ का जिक्र है । सरमा और पणियों की कहानी शायद नाटक की भाँति खेली जाती थी। सरमा एक कुतियाँ थी, जो देवताओं के गायों की रक्षा करती थी , एक बार पणि लोग गायों को चुरा ले गये, सरमा को पता लगाने भेजा गया । सरमा ने गायों को खोज निकाला , और इन्द्र उन्हें  छुडा लाये ।ऋग्वेद में एक कवियित्री का वर्णन है, जिसका नाम घोषा था ।उनके शरीर में कुछ दोष थे, जिन्हें उसने अश्विनीकुमारों को प्रार्थना करके ठीक करा लिया ।घोषा के अतिरिक्त विश्ववरा वाक् लोपामुद्रा आदि स्त्री कवियों के नाम ऋग्वेद में आते है ।
                   यज्ञों के अवसर पर ऋत्विक् लोग देवताओं की स्तुतियाँ करते थे ।ऋग्वेद को जानने वाला ऋत्विक ‘होता’ , यजुर्वेद को जानने वाला ‘अध्वर्यु’, और सामवेद को जानने वाला ‘उद्गाता’ कहलाता था ।अथर्वेद के ऋत्विक् को ‘बह्मा’ कहते थे ।