संस्कृत एक परिष्कृत भाषा है, यह सभी भाषाओं की जननी है। यह भारत की संस्कृति
का प्रतीक है।संस्कृत इस देश के प्रत्येक बच्चे को अनिवार्य रुप से आना चाहिये।यदि
बच्चा अपने देश की संस्कृति से नही जुड़ेगा ,तो सोचिए वह इस देश का परिष्कृत नागरिक कैसे बनेगा। दिन की शुरुआत भी ‘सुप्रभातम्’
संस्कृत शब्द से ही होती है। सबसे प्रथम ‘ऊँ’
शब्द का प्रादुर्भाव हुवा था।जिसका उच्चारण करने से एक अलौकिक आनन्द की अनुभुति होती
है। प्रात;काल उठने पर सबसे प्रथम हम अपने दोंनो हाथों के दर्शन करते है, कहते है हाथों
में सम्पुर्ण ब्रह्माड के दर्शन होते है-
कराग्रे
वसते लक्ष्मी, करमूले च गोविन्दः
करमध्ये
च सरस्वती, प्रभाते कर दर्शनम्।
जब हम ईश्वर के समक्ष खड़े होते है,तब भी हम संस्कृत
में ही यह श्लोक बोलते है-
गुरुर्बह्मा,
गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवों महेश्वरः
गुरुः
साक्षात् परबह्म , तस्मै श्री गुरवे नमः।
कहने का मतलब यह कि यदि हम भारतवर्ष में रहते है,
तो हमारे दिन की शुरुआत बिना संस्कृत के हो ही नही सकती। ओर भी एसे कई शब्द है जो हम
दिन की शुरुआत में बोलते है, जैसे सुर्य को जल चढ़ाते समय ‘ऊँ श्री सूर्याय नमः’ श्री गणेशाय नमः, ऊँ नमः शिवाय, ऊँ गं गणपतये नमः,
ऊँ तत्पुरुषाय विद् महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात् ।एसे कई अनेकानेक
श्लोक है, जिनका उच्चारण स्वतः ही अपने आप यदि ईश्वर के समक्ष खड़े है, तो कुछ तो अवश्य
ही मुँह से प्रस्फुटित होगा, यह सीखना नही पड़ता है, यदि बच्चा जन्म लेता है, ६माह
पश्चात जब वह अपनी माँ के साथ मन्दिर जाता है, तब ईश्वर को देखकर अपने आप वह दोनों
हाथ जोड़ लेता है।यह प्रक्रिया स्वतः ही होती है।
इसके
अतिरिक्त संस्कृत भाषा को सीखना अलग बात है , यदि आप संस्कृत भाषा सीखने के इच्छुक
है तो मेरा यह प्रयास है कि मै आपको अत्यन्त सरल रुप से हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद
करना, संस्कृत बोलना, संस्कृत व्याकरण का समुचित रुप से अध्ययन आदि सभी
कुछ सीखाना चाहती हुँ, मेरा यह प्रयास रहेगा कि अधिक से अधिक लोग इसका लाभ ले सके ।
धन्यवाद
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