वर्ण-नाद की लघुतम , अविभाज्य ,व्यवहारार्थ (व्यवहार
योग्य) इकाई वर्ण है।
संकेत- सरलता सुक्ष्मता ,स्पष्टता जिनका स्वर की
सहायता से ही उच्चारण हो,वह व्यंजन
स्वयं
राजन्ते इति स्वराः ।
संकेत का अर्थ अपेक्षाकृत व्यापक है, प्रायः संकेत
तथा संकेतिक में निश्चित संबंध होता है।
जैसे- बच्चे का चित्रवाला वह मोटर चालक को पाठशाला
के होने की सुचना देता है । उसे समझने के लिए भाषा विशेष का बोध होना आवश्यक नही है।
प्रतीक- समुदाय विशेष में उसकी इच्छा के अनुभव प्रयुक्त
होते है।वे किसी पुर्ण अर्थ को अंश के माध्यम से व्यक्त करते । इनमें प्रतीक तथा प्रतित्य
में निश्चित संबंध नही हुवा। जैसे- ‘गाय’ इस शब्द का उच्चारण करने पर केवल उस भाषा
समुदाय के लिए ही विशिष्ट प्राणी का अर्थ बोध होता है।
व्यवस्था-ऐसी सुनिश्चित योजनानुसार घटक ईकाइयों और
अवयवों के क्रम, संख्या ,प्रकार आदि का निर्धारण हो, उसे व्यवस्था कहते है।
प्रत्येक भाषा में अनन्त ध्वनियों मे से जो कुछ निश्चित
ध्वनियों का ही प्रयोग होता है, उन ध्वनियों का क्रम भी निश्चित होता है, उन ध्वनियों
के संयोगादि का भी प्रकार निश्चित होता है। इसके अतिरिक्त पद, पदसमुच्चय , तथा वाक्य
रचनादि में भी क्रमबद्धता होती है। यह व्यवस्था समाज के द्वारा निश्चित होती है। व्यवस्था
के अन्तर्गत उपव्यवस्थाएँ भे होती है। उस समाज के सभी सदस्य उस निश्चित व्यवस्था से
परिचित होते है। तथा उसी के अनुरुप भाषा का व्यवहार करते है। इस प्रकार निश्चित समाज
स्वीकार मर्यादा के अन्तर्गत क्रम बद्धता का पुर्व ज्ञान ही भाषा की व्यवस्था का परिचायक
है। पूर्व ज्ञान होने के कारण ही भाषा का प्रायोग संभव होता है। तथा इसी के कारण भाषा
में सम्प्रेषण अर्थात अर्थ का आदान-्प्रदान सम्भव होता है।
किसी भाषा के शब्द समुह का ही ज्ञान उस भाषा के व्यवहार
या प्रयोग के लिए पर्याप्त नही होता ,अर्थात वस्तु या प्राणी आदि के बोधक पदों या शब्दों
को जान लेने पर ही उनके विषय में वाण्छित बात नही की जा सकती, जब तक की हमें उस भाषा
की व्यवस्था का बोध न हो। इस व्यवस्था को ही संरचना या संघटना कहते है।यह व्यवस्था
न केवल वाचिक प्रतीकों की व्यवस्था तक सीमित है, अपितु अपनी सामाजिक अव्यवस्था के अनुरुप
अर्थ के स्तर पर भी निश्चित क्रम तथा व्यवस्था होती है। इस तरह हमें अर्थ को भी अपने
अभीष्ट कथन के रुप में स्थरीकृत तथा व्यवस्थित करना होता है। इस व्यवस्था का पूर्ण
ज्ञान ही हमें उस भाषा के व्यवहार के लिए समर्थ बनाता है।
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