Wednesday, 18 December 2013

स्वर किसे कहते है ?


‘स्वर’ का अर्थ है, ऐसा वर्ण जिसका उच्चारण अपने आप हो सके, जिसको उच्चारण के लिए दूसरे वर्ण से मिलने की आवश्यकता न हो। स्वरों का दूसरा नाम ‘अच्’ भी है।
                                              व्यंजन
ऐसे वर्ण जिसका उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण – अर्थात् स्वर से मिले बिना नही किया जा सकता , व्यंजन कहलाते है।ऊपर ‘क’ से लेकर ‘ह’ तक के सारे वर्ण व्यंजन कहलाते है। क में अ मिला हुआ है। इसका शुद्ध रुप केवल क् होगा। व्यंजन का दूसरा नाम ‘इत्’ भी है,इसी कारण व्यंजनमूलक चिन्ह को भी ‘इत्’ कहते है।
स्वर तीन प्रकार के होते है- १, ह्रस्व २, दीर्घ  ३,  मिश्रविकृत दीर्घ।  मिश्रविकृत दीर्घ किन्हीं दो मिश्र स्वरों के मिल जाने से बनता है, जैसे अ+ इ= ए। स्वर के उच्चारण में यदि एक मात्रा समय लगे तो वह ह्रस्व कहलाता है।जैसे –अ, और यदि दो मात्रा समय लगे तो दीर्घ कहलाता है, जैसे- आ, । मिश्र विकृत स्वर दीर्घ होते है।
व्यंजनों के भी कई भेद है- १, स्पर्श   २,  अंत;स्थ  ३, उष्म   ४,  परुष व्यंजन   ५,  मृदु व्यंजन। 
क से लेकर म तक के वर्ण ‘स्पर्श’ कहलाते है।इसमें  कवर्ण आदि पाँच वर्ग है। य र ल व अंत;स्थ है, अर्थात स्वर और व्यंजन के बीच के है। श ष स ह ‘उष्म’ है,अर्थात इनका उच्चारण करने के लिए भीतर से जरा अधिक जोर से श्वास लानी पड़ती है। पाँचों वर्गो के प्रथम और द्वितीय अक्षर (क, ख, च, छ,ट, ठ,त, थ, प, फ,) तथा श, ष, स, वर्णों को ‘परुष’ व्यंजन और शेष को मृदु व्यंजन कहते है।
                                                          विसर्ग
विसर्ग को वस्तुतः अघोष ‘ह’ समझना चाहिए। यह सदा किसी स्वर के बाद आता है।यह स् अथवा र् का एक रुपान्तर मात्र है। किन्तु उच्चारण की विशेषता के कारण इसका व्यक्तित्व अलग है।

2 comments:

  1. बहुत अच्छा धन्यवाद

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