अन्धकारे दीपिकाभिर्गच्छन् स्खलन्ति क्वचित्
एवं स्वरै प्रतीचानां भक्त्यर्थम् स्फुटन्ति।
जिस
प्रकार अन्धकार में दीपिका की सहायता से चलता हुवा व्यक्ति कही ठोकर खाता, उसी प्रकार
स्वरों की सहायता से किए गए अर्थ स्फुट (सन्देह रहित) होते है।
उदात्तादि स्वरों की सत्ता वैदिक भाषा की विशेषता
है। वेद के वास्तविक अभिप्राय तक पहुँचने के जितने साधन है, उनमें स्वर-शास्त्र सबसे
प्रधान है। व्याकरण और निरुक्त जैसे प्रमुख शास्त्र भी स्वर-शास्त्र के अंग बनकर ही
वेदार्थ ज्ञान में सहायक होते है। स्वर शास्त्र का विरोध होने पर ये दोनों शास्त्र
पंगु बने रहते है। स्वर ज्ञान के बिना न केवल मंत्र का वास्तविक अभिप्राय ही अज्ञात
रहता है, अपितु स्वर शास्त्र की उपेक्षा से अनेक स्थानों में अर्थ का अनर्थ भी हो जाता
है। इसलिए वेद के सूक्ष्मांतक अभिप्राय तक पहुँचने के लिए उदात्त आदि स्वरों का ज्ञान
नितांत आवश्यक है।
स्वर
शब्द लौकिक और वैदिक वाड़्मय में भिन्न अर्थो में प्रयुक्त होता है। वाक् वर्ण विशेष
अत्+ऋणादि संगीत शास्त्र के स्वर यण , प्राण, सूर्य , प्रणव, उदात्तादि ध्वनि विशेष
प्रस्तुत संदर्भ में स्वर शब्द से वैदिक वाड़्मय में प्रसिद्ध उदात्त, अनुदात्त , स्वरित
संज्ञक उच्चारण विषयक वर्ण वर्गो का ग्रहण होता है।
वैदिक
वाड़्मय में उदात्त आदि स्वरों के अनेक भेद उल्लिखित है, कहीं सात, कहीं पाँच , कहीं
चार, कहीं तीन ,कहीं दो और कहीं एक ही स्वर का उल्लेख मिलता है। महाभाष्य में सात स्वर
गिनाये गए है। नाटक शिक्षा में ५स्वर ।
उदात्ताश्चानुदात्तश्चस्वरितप्रचितोतथा
निपातश्चेति
विधेय स्वरभेदस्तु पंचमः।
साधारणतया निपात शब्द अनुदात्त अर्थ में प्रसिद्ध
है, शाकव, माध्यन्दित , कण्व, कौथुम, आदि संहिताओं
में उदात्त, अनुदात्त और स्वरित इन तीन स्वरों का ही उच्चारण होता है। प्रचय स्वर का
भी उल्लेख है।
स्वर
शास्त्र के अनुसार उदात्त आदि समस्त स्वर उच्चारण वर्ण स्वर अर्थात् अच् संज्ञक वर्णो
के धर्म है, व्यंजनों के नही। अच् ही ऐसे वर्ण हैजिनका उच्चारण बिना अन्य वर्ण की सहायता
के होता है, स्वयं सजन्त इति स्वराः। महाभाष्य
।१।२।३०
उदात्त
अनुदात्त और स्वरित स्वरों के लक्षण और उनके उच्चारण की विधि का उल्लेख अनेक ग्रंथों
में मिलता है। पाणिनीय मत-
उच्चैः
उदात्तः , नीचैः अनुदात्तः, समाहारः स्वरितः ।
जिस स्वर के उच्चारण में आयाम हो, उसे उदात्त कहते
है, आयाम का अर्थ है, मात्रों का स्वर की तरफ
खींचा जाना ।जिस स्वर के उच्चारण में विलंब हो, उसे अनुदात्त कहते है। मात्रों की शिथिलता
या उनका अधोगमन विश्राम कहलाता है । जिस स्वर के उच्चारण में आक्षेप हो, उसे स्वरित
कहते है, आक्षेप का अर्थ है- मात्रों का निचैरगमन। इस प्रकार के निर्देशन के आधार पर ही शुद्ध उच्चारण
कर पाना कठिन ही है। इन स्वरों का सुक्ष्म उच्चारण प्रकार चिरकाल से लुप्तप्राय है,
महाराष्ट्र में कुछ बृहद् ऋग्वेदीय ब्राह्मण स्वरों के सूक्ष्म उच्चारण में कदाचित्
समर्थ होते, परन्तु अधिकतर श्रोत्रिय हस्त आदि अंगचालन के द्वारा ही उदात्त आदि स्वरों
का द्योतन करते है।