पंचमी- अपादान कारक
जिससे कोई वस्तु अलग हो, उसे अपादान कारक कहते है,
जैसे- पेड़ से पत्ता गिरता है।
यहाँ ‘पेड़’ अपादान है, । राम गाँव से चला आया। यहाँ
‘गाँव’ अपादान है।
जिस गुरु या अध्यापक या मनुष्य से कोई चीज नियमपुर्वक
पढ़ी जाती है, अथवा मालुम की जाती है, वह गुरु या अध्यापक अन्य मनुष्य पादान होता है।
जैसे-
उपाध्यायात् अधीते। अध्यापकात् गणितं पठति।
जिसके कारण डर मालुम हो, अथवा जिसके डर के कारण रक्षा
करनी हो, उस कारण को अपादान कहते है। जैसे-
चौरात् बिभेति। सर्पात् भयम्।
षष्ठि-
सम्बन्ध कारक
दो या दो से अधिक संज्ञा शब्दों में अथवा सर्वनाम
तथा संज्ञा शब्दों में जो सम्बन्ध होता है, उसे दिखलाने के लिए षष्ठि विभक्ति का प्रयोग
होता है। जैसे- राज्ञः भृत्यः । इसमें राजा और नौकर में सम्बन्ध है, इसी प्रकार रामस्य पुस्तकानि , गोविन्दस्य पुत्रः
।
सप्तमी-अधिकरण
कारक
जिस स्थान पर कोई कार्य होता है, उसे अधिकरण कहते
है, जैसे- वह पाठशाला में पुस्तक पढ़ता है, ,यहाँ ‘पाठशाला’ अधिकरण है।
जिस समय कोई कार्य सम्पन्न होता है, वह समय सप्तमी
में रखा जाता है। शैशवे वेदमपठम्।
जब किसी कार्य के हो जाने पर दूसरे कार्य का होना
प्रतीत होता है, तो जो कार्य पहले हो चुका होता है, उसमें सप्तमी होती है। जैसे-
सूर्ये अस्तं गते गोपाः गृहम् अगच्छन्।
रामे वनं गते दशरथः प्राणान् अत्यजत्।
प्रेम, आसक्ति, या आदरसुचक शब्दों में सप्तमी होती
है, जिसके प्रति प्रेम, आसक्ति अथवा आदर प्रदर्शित
किया जाता है, ।जैसे- बालके अस्मिन स्निह्यति। शिवे मम् महान् अभिलाषा।
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