प्रथमा-कर्ता
कारक
जो किसी काम को करता है, वह कर्ता कारक होता है।
कर्तृ वाच्य मेम कर्ता कारक बतलाने के लिए प्रथमा
विभक्ति काम में लाई जाती है।जैसे- राम पढ़ रहा है। यहाँ पर पढ़ने के काम को ‘राम’
कर रहा है, इसलिए ‘राम’ कर्ता कारक हुवा ,- राम कर्ता कारक है-इस बात को बताने के लिए
‘राम’ प्रथमा में रखा जाएगा. –रामः – रामः पठति।इसी प्रकार अश्वाः धावन्ति।आदि।
प्रथमा विभक्ति का उपयोग किसी को सम्बोधन करने के
लिए भी होता है। जैसे- बालकाः – है बालकों , कन्याः – हे कन्याओं । इसलिए सम्बोधन को
अलग विभक्ति नही मानते।
द्वितीया-
कर्म कारक
जिसके ऊपर क्रिया का फल पड़ता है, उसे कर्म कारक
कहते है। जैसे- लड़का साँप को मार रहा है।
यहाँ पर मारने का असर साँप के ऊपर पड़ रहा है, इसलिए साँप कर्म कारक हुआ ।
कर्म कारक बतलाने के लिए द्वितीया विभक्ति काम में
लाई जाती है- जैसे-
रामः
फलं खादति।
वयं
चित्राणि पश्यामः।
गत्यर्थक धातुओं के योग में द्वितीया होती है।जैसे-
गृहं
गच्छामि। वनं विचचार।
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